काव्य
काव्य की परिभाषा - समस्त भाव प्रधान साहित्य को काव्य कहते हैं।
आचार्य विश्वनाथ प्रसाद के अनुसार - रसात्मकं वाक्यं काव्यम् ।
अर्थात् रस युक्त वाक्य ही काव्य है।
पंडितराज जगन्नाथ के अनुसार - रमणीयार्थ प्रतिपादक: शब्दः काव्यं ।
अर्थात् रमणीय अर्थ के प्रतिपादक धर्म को काव्य कहते हैं।
भामह के अनुसार - शब्दार्थो सहिर्तो काव्यं ।
अर्थात् शब्द और अर्थ से युक्त रचना ही काव्य है।
श्री जयशंकर प्रदास के अनुसार - आत्मा की संकल्पनात्मक अनुभूति को काव्य कहते हैं।
रस की परिभाषा और प्रकार उदाहरण सहित
काव्य के भेद -
रचना के आधार पर काव्य के दो भेद होते हैं -
1 .श्रव्य काव्य
2 . दृश्य काव्य
1 . श्रव्य काव्य - जिस काव्य को पढ़ने या सुनने से आनन्द प्राप्त होता है। उसे श्रव्य काव्य कहते हैं।
श्रव्य काव्य के दो भेद है -
1 . प्रबंध काव्य
2 . मुक्तक काव्य
1 . प्रबंध काव्य - वह काव्य रचना जो कथा सूत्रों तथा छन्दों की तारतम्यता में अच्छी तरह बंधी हो वह प्रबन्ध काव्य कहलाती है ।
प्रबन्ध काव्य के भेद - ( 1 ) महाकाव्य , ( 2 ) खण्ड काव्य , ( 3 ) आख्यानक गीत
( 1 ) . महाकाव्य
महाकाव्य में जीवन का अथवा घटना विशेष का सम्पूर्ण वर्णन होता है।
महाकाव्य की विशेषताये -
1. महाकाव्य का आकार बड़ा होता है।
2. महाकाव्य में सम्पूर्ण जीवन का चित्रण किया जाता है।
3. महाकाव्य में पात्रों की संख्या अधिक होती है।
4. महाकाव्य में अनेक छंदो का प्रयोग होता है।
5. महाकाव्य में आठ से अधिक सर्ग होते हैं।
रचियता - महाकाव्य
तुलसीदास - रामचरित मानस
मैथिलीशरण गुप्त - साकेत
मलिक मुहम्मद जायसी - पदमावत
जयशंकर प्रसाद - कामायनी
सुमित्रानंदन पंत - लोकायतन
( 2 ) . खण्डकाव्य
खण्डकाव्य में नायक के जीवन की किसी एक घटना या पक्ष का वर्णन होता है।
खण्डकाव्य की विशेषताएँ -
1. खण्डकाव्य का आकार लघु अर्थात् छोटा होता है।
2. खण्डकाव्य में जीवन के किसी एक पक्ष का चित्रण होता है।
3. खण्डकाव्य में केवल एक ही सर्ग होता है।
4. खण्डकाव्य में पात्रों की संख्या सीमित अर्थात् कम होती है।
5. खण्डकाव्य में एक ही छंद का प्रयोग होता है।
रचियता - खण्डकाव्य
मैथिलीशरण गुप्त - पंचवटी
नरोत्तम दास - सुदामा चरित
श्याम नारायण पाण्डे - हल्दी घाटी का युद्ध
रामधारी सिंह 'दिनकर' - रश्मिरथी
तुलसी दास - पार्वती मंगल
समास की परिभाषा और भेद उदाहरण सहित
महाकाव्य | खण्डकाव्य |
---|---|
1. महाकाव्य का आकार बड़ा होता है। | 1. खण्डकाव्य का आकार छोटा होता है। |
2. महाकाव्य में सम्पूर्ण जीवन का चित्रण किया जाता है। | 2. खण्डकाव्य में जीवन के किसी एक पक्ष का चित्रण होता है। |
3 . महाकाव्य में पात्रों की संख्या अधिक होती है। | 3 . खण्डकाव्य में पात्रो की संख्या सीमित अर्थात् कम होती है। |
4 . महाकाव्य में अनेक छंदो का प्रयोग होता है। | 4 . खण्डकाव्य में एक ही छंद का प्रयोग होता है। |
5 . महाकाव्य में आठ से अधिक सर्ग होते हैं। | 5 . खण्डकाव्य में केवल एक ही सर्ग होता है। |
( 3 ) . आख्यानक गीत - ऐसी पदबद्ध रचना जिसमें एक लघु कथा वर्णित होती है तथा जिनके छंदो में गेयता होती है। उसे आख्यानक गीत कहते हैं।
रचियता - आख्यानक गीत
मीराबाई - नरसी जी का माहेरो
सुभद्राकुमारी चौहान - झाँसी की रानी
मैथिलीशरण गुप्त - रंग में भंग
तुलसीदास - हनुमान चालीसा
मुक्तक काव्य
परिभाषा - वह काव्य रचना जिसमें कथा नहीं होती है। तथा प्रत्येक छन्द पूर्व पद से मुक्त होता है। मुक्तक काव्य कहते हैं।
मुक्तक काव्य के दो भेद होते हैं-
1. पाठ्य मुक्तक - पाठ्य मुक्तक मे विषय को प्रधानता होती है। इसमें प्रसंगानुसार भावानुमति व कल्पना का चित्रण होता है।
2 . गेय मुक्तक - गेय मुक्तक को गीति या प्रगीति काव्य भी कहते है। इसमें भाव प्रवणता , सौन्दर्य बोध , अभिव्यक्ति की संक्षिप्तता , संगीतात्मकता की प्रधानता होती है ।
रचियता - मुक्तक काव्य
हरिवंशराय बच्चन - मधुशाला
तुलसी दास - दोहावली
बिहारी - सतसई
रहीम - रहीम के पद
संधि की परिभाषा व भेद उदाहरण सहित
चम्पू काव्य - जिसमें गद्य और पद्य मिश्रित रूप से प्रयोग किये जाते है। उसे चम्पू का कहते हैं।
मैथिलीशरण गुप्त कृत यशोधरा चम्पू काव्य का उदाहरण है।
काव्य के गुण
काव्य गुण - काव्य में आंतरिक सौन्दर्य तथा रस के प्रभाव एवं उत्कर्ष के लिए स्थायी रूप से विद्यमान मानवोचित भाव और धर्मं अथवा तत्व को काव्य गुण ( शब्द गुण ) कहते हैं।
यह काव्य में उसी प्रकार विद्यमान होता है। जैसे - फुल में सुगन्धि ।
काव्य गुण या शब्द गुण के प्रकार -
(1) माधुर्य गुण
(2) ओज गुण
(3) प्रसाद गुण
(1) माधुर्य गुण - यदि किसी काव्य को पढने या सुनने से हृदय में मधुरता का संचार होता है तो उसमें माधुर्य गुण होता है।
यह गुण विशेष रूप में श्रंगार रस , शांत रस , एवं करूण रस में होता है।
उदाहरण - बसो मोरे नैनन में नन्दलाल
(2) ओज गुण - यदि किसी काव्य को पढने या सुनने से हृदय में ओज , उमंग , उत्साह का संचार होता है तो उसमें ओज गुण होता है।
यह गुण विशेष रूप में वीर रस , विभक्त रस , एवं भयानक रस में होता है।
उदाहरण - खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी ।
(3) प्रसाद गुण - यदि किसी काव्य को पढने या सुनने से हृदय या मन खिल जाए , हृदयगत शांति का बोध हो, प्रसाद गुण कहलाता है।
यह गुण सभी रसों में होता है।
उदाहरण -
जीवन भर आतप सह वसुधा पर छाया करता है।
तुच्छ पत्र की भी स्वकर्म में कैसी तत्परता है ।।
भाषा , विभाषा , राजभाषा , मातृभाषा , राष्ट्रभाषा की परिभाषा , विशेषतायें और अंतर - देखें
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