Ras in Hindi - रस की परिभाषा , भेद व प्रकार उदाहरण सहित hindi grammer
रस
परिभाषा - किसी काव्य या साहित्य को पढ़ने , सुनने या देखने से पाठक , श्रोता या दर्शक को जिस आनंद की अनुभूति होती है। उसे रस कहते हैं।
संधि की परिभाषा और भेद उदाहरण सहित
रस के चार भेद होते हैं -
1 . स्थायी भाव
2 . विभाव
3 . अनुभाव
4 . संचारी भाव
1 . स्थायी भाव - सहृदय के हृदय में जो भाव स्थायी रूपे से विद्यमान रहते है। उसे स्थायी भाव कहते है इनकी संख्या 10 है ।
रस | स्थायी भाव |
---|---|
श्रृंगार रस | रति या प्रेम |
हास्य रस | हास या हँसी |
करूण रस | शोक |
रौद्र रस | क्रोध |
वीर रस | उत्साह |
भयानक रस | भय |
वीभत्स रस | घृणा या जुगुप्सा |
अद्भुत रस | विस्मय |
शांत रस | निर्वेद या वैराग्य |
वात्सल्य रस | वात्सल्य या स्नेह |
2 . विभाव - स्थायी भावो से उत्पन्न होने के कारणों को विभाव कहते है। इनके दो भेद है-
1 . आलंबन
2 . उद्दीपन
3 . अनुभाव - आश्रय की बाह्य शारीरिक चेष्टाओं को अनुभाव कहते है।
4 . संचारी भाव - आश्रम के चित्त में उत्पन्न होने वाले अस्थिर मनोविकारो को संचारी भाव कहते हैं। इनकी संख्या 33 मानी जाती है।
हर्ष | मोह |
मति | ग्लानि |
अवहित्था | गर्व |
शंका | विशाद |
अपस्मार | आलस्य |
अमर्श | दैन्य |
त्रास | निंदा |
वितर्क | चपलता |
मद | जड़ता |
दीनता | बिबोध |
आवेग | उग्रता |
व्याधि | असूया |
श्रम | लज्जा |
सन्त्रास | चित्रा |
धृति | चिंता |
स्मृति | उतसुकता |
मरण | स्वन्प |
उन्माद |
महाकाव्य और खण्डकाव्य में अन्तर
रसों की परिभाषा उदाहरण सहित
1. श्रृंगार रस -
परिभाषा - 1 : सहृदय के हृदय में स्थित रति नामक स्थायी भाव का जब विभाव , अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है। तब उसे श्रृंगार रस कहते हैं ।
परिभाषा - 2 : जिस काव्य में स्त्री पुरूष के प्रति प्रेम हो उस काव्य में श्रृंगार रस होता है।
श्रृंगार रस के भेद -
1 . संयोग श्रृंगार
2 . वियोग श्रृंगार
1 . संयोग श्रृंगार - इसमें नायक - नायिका के मिलन का वर्णन होता है।
उदाहरण -
राम को रूप निहारति जानकी ,
कंगन के नग की परछाहीं ।
यातो सबै सुधि भूल गई ,
कर टैकि रही पल टारत नाही ॥
समास किसे कहते हैं उसके प्रकार उदाहरण सहित
2 . वियोग श्रृंगार - इसमें नायक नायिका के विरह का वर्णन होता है।
उदाहरण -
हे खग - मृग हे मुधकर श्रेनी
तुम देखी भीता मृग नैनी ॥
2 . हास्य रस -
परिभाषा - 1 : सहृदय के हृदय में स्थित हास (हँसी) नामक स्थायी भाव का जब विभाव , अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है। तब उसे हास्य रस कहते हैं ।
परिभाषा - 2 : जिस काव्य को पढ़ने या सुनने से हमें हँसी आये उस काव्य में हास्य रस होता है।
उदाहरण -
जब धूम - धाम से जाती है बारात किसी कि सजधज कर ।
मन कहता धक्का दे दूँ दूल्हे को जा बैठूँ घोड़े पर ।
सपने मै ही मुझको अपनी , शादी होती दिखती है ।
वरमाला ले दुल्हन बढ़ती , बस नींद तभी खुल जाती है।
3 . करूण रस -
परिभाषा - 1 : सहृदय के हृदय में स्थित शोक ( दु : ख ) नामक स्थायी भाव का जब विभाव , अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है। तब उसे करूण रस कहते हैं ।
परिभाषा - 2 : जिस काव्य को पढ़ने या सुनने से हमें शोक अर्थात् दुःख हो उस काव्य में करूण रस होता है।
उदाहरण -
अभी तो मुकुट बंधा था माथ ,
कल ही हुए हल्दी के हाथ ।
हाय! रुक गया यहीं संसार ,
बना सिंदूर अनल अंगार ॥
4 . रौद्र रस -
परिभाषा - 1 : सहृदय के हृदय में स्थित क्रोध नामक स्थायी भाव का जब विभाव , अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है। तब उसे रौद्र रस कहते हैं ।
परिभाषा - 2 : जिस काव्य को पढ़ने या सुनने से हमें क्रोध आये उस काव्य में रौद्र रस होता है।
उदाहरण -
श्री कृष्ण के सुन वचन ,
अर्जुन क्रोध से जलने लगे ।
सब शोक अपना भूलकर ,
करताल - युगल मलने लगे ।।
5 . वीभत्स रस -
परिभाषा - 1 : सहृदय के हृदय में स्थित जुगुप्सा अर्थात् घृणा नामक स्थायी भाव का जब विभाव , अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है। तब उसे वीभत्स रस कहते हैं ।
परिभाषा - 2 : जिस काव्य को पढ़ने या सुनने से हमें घृणा हो उस काव्य में वीभत्स रस होता है।
उदाहरण - दुर्गन्ध का गुब्बारा ,
गंदगी का आबारा ।
महा नगरी जगमग का ,
विक्रत उपहास ॥
6 . भयानक रस -
परिभाषा - 1 : सहृदय के हृदय में स्थित भय नामक स्थायी भाव का जब विभाव , अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है। तब उसे भयानक रस कहते हैं ।
परिभाषा - 2 : जिस काव्य को पढ़ने या सुनने से हमें भय हो उस काव्य में भयानक रस होता है।
उदाहरण -
देखे जब बारात में ,
भूत - प्रेत शिव ब्याल ।
थर - थर काँपे नारी - नर ,
भाग चले सब बाल ।।
7 . अद्भुत रस -
परिभाषा - 1 : सहृदय के हृदय में स्थित विस्मय ( आश्चर्य ) नामक स्थायी भाव का जब विभाव , अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है। तब उसे अद्भुत रस कहते हैं ।
परिभाषा - 2 : जिस काव्य को पढ़ने या सुनने से हमें विस्मय अर्थात् आश्चर्य हो उस काव्य में अद्भुत रस होता है।
उदाहरण -
बिनु पग चलै सुनै बिनु काना ।
कर बिनु कर्म करै विधि नाना ॥
8 . वीर रस -
परिभाषा - 1 : सहृदय के हृदय में स्थित उत्साह नामक स्थायी भाव का जब विभाव , अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है। तब उसे वीर रस कहते हैं ।
परिभाषा - 2 : जिस काव्य को पढ़ने या सुनने से हमारे मन में उत्साह अर्थात् उमंग हो उस काव्य में वीर रस होता है।
उदाहरण -
वह खून कहो किस मतलब का,
जिसमे उबाल का नाम नहीं ।
वह खून कहो किस मतलब का,
जो आ सके देश के काम नहीं ॥
9 . शांत रस -
परिभाषा - 1 : सहृदय के हृदय में स्थित निर्वेद नामक स्थायी भाव का जब विभाव , अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है। तब उसे शांत रस कहते हैं ।
परिभाषा - 2 : जिस काव्य को पढ़ने या सुनने से हमारे मन में वैराग उत्पन्न हो उस काव्य में शांत रस होता है।
उदाहरण -
राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट ।
अंतकाल पछतायेगा , जब प्राण जायेंगे छूट ॥
10 . वात्सल्य रस -
परिभाषा - 1 : सहृदय के हृदय में स्थित वात्सल्य नामक स्थायी भाव का जब विभाव , अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है। तब उसे वात्सल्य रस कहते हैं ।
परिभाषा - 2 : जिस काव्य को पढ़ने या सुनने से हमारे मन में वात्सल्य अर्थात् पुत्र प्रेम उत्पन्न हो उस काव्य में वात्सल्य रस होता है।
उदाहरण -
मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो ।
ख्याल परे सब सखा मिली मेरे मुख लपटायों ।।
स्थायी भाव और संचारी भाव मे अंतर -
स्थायी भाव | संचारी भाव |
---|---|
1. मनोगत स्थिर भावों को स्थायी भाव कहते हैं। | 1. मनोगत अस्थिर भावों को संचारी भाव कहते हैं। |
2 . स्थायी भावों की संख्या 10 होती है। | 2 . संचारी भावों की संख्या 33 होती है। |
3 . स्थायी भाव अधिक समय तक रहते हैं। | 3 . संचारी भाव कम समय तक रहते हैं। |
4 . एक रस का एक ही स्थायी भाव होता है। | 4 . एक रस के कई संचारी भाव होते हैं। |
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